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उदयपुर पहुंचे अंतरराष्ट्रीय रेसलर दी ग्रेट खली ने अपने कॅरियर से जुड़े बताएं कई राज

उदयपुर- देश-दुनिया में दी ग्रेट खली के नाम में मशहूर लंबे-चौड़े डील-डौल वाले अंतरराष्ट्रीय रेसलर दलीपसिंह राणा बुधवार को उदयपुर पहुंचे।

उदयपुरDec 07, 2017 / 11:32 am

madhulika singh

the great khali in udaipur
उदयपुर- देश-दुनिया में दी ग्रेट खली के नाम में मशहूर लंबे-चौड़े डील-डौल वाले अंतरराष्ट्रीय रेसलर दलीपसिंह राणा बुधवार को उदयपुर पहुंचे। उन्होंने कहा कि अंडरटेकर से लडऩा उनका सपना था। डब्ल्यूडब्ल्यूई रिंग में अंडरटेकर के सामने खड़े होना ऐसा था, मानो जीवन का मकसद पूरा हो गया हो। वह सातवें आसमान पर थे। दूसरे पहलवान कहते थे कि हम कई वर्षों से यहां हैं, लेकिन अंडरटेकर से हाथ मिलाने से भी घबराते हैं। आपको जानकारी नहीं है कि आपने किसकी छाती पर पैर रखा है।
खली यहां एक होटल में पत्रिका से मुखातिब थे। उन्होंने बताया कि गरीब परिवार से उठकर डब्ल्यूडब्ल्यूई के इतिहास का चौथा सबसे लम्बा पहलवान बनना आसान नहीं था। वह हिमाचल प्रदेश के छोटे से गांव धिराइना से निकले हैं, जहां आज भी बस नहीं जाती। पानी-बिजली और पक्की सडक़ें तक नहीं है। खली ने अपने संघर्ष और पंजाब पुलिस में जाने से लेकर डब्ल्यूडब्ल्यूई तक पहुंचने की पूरी कहानी बताई।
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होता है भेदभाव
बकौल खली, डब्ल्यूडब्ल्यूई में भेदभाव होता है। मेरे साथ भी हुआ, लेकिन मैं ग्रेट खली हूं। मुझ पर असर नहीं हुआ। मेरी जगह कोई और होता तो कॅरियर खत्म हो जाता। डब्ल्यूडब्ल्यूई वाले भी भारत में मेरी फैन फॉलोइंग से हैरान थे। बच्चे से लेकर बूढ़े तक और मीडिया ने मुझे बहुत सहयोग दिया। दिल्ली में डब्ल्यूडब्ल्यूई वाले बुला रहे हैं, लेकिन मैं नहीं जा रहा।

सीडब्ल्यूई से तराशेंगे हीरे
खली ने बताया कि डब्ल्यूडब्ल्यूई के बाद अब वह देश के अच्छे पहलवान तैयार करना चाहते हैं, जो विश्व में भारत का नाम रोशन करें। डब्ल्यूडब्ल्यूई में हमारी सीडब्ल्यूई एकेडमी से कविता देवी गई हुई हैं। जालन्धर में वर्ष 2015 में सीडब्ल्यूई की शुरुआत हुई है। कई पहलवान आगे जाने के लिए तैयार हैं। राजस्थान के करीब 15 पहलवान और एक लडक़ी भी पलहवान हैं हमारी एकेडमी में। फिलहाल जोश भरे करीब 250 युवा तैयारी कर रहे हैं। हिन्दुस्तान में हम प्रतियोगिता कर युवाओं को नशे से दूर करेंगे। बाद में उसे ख्यातनाम पहलवान बनाएंगे, ताकि दुनिया में हमारा नाम हो।

मजदूरी की, पत्थर तोड़े, बॉडी बिल्डिंग से तय किया डब्ल्यूडब्ल्यूई का मुकाम

खली ने बताया कि उन्हें कुश्ती और मुक्केबाजी पसंद थी, लेकिन पुलिस की किसी भी प्रतियोगिता में उन्हें केवल ओवरवेट होने के कारण नहीं लिया जाता था। संघर्ष के दिनों में उन्होंने मजदूरी की, पत्थर तोडऩे का काम भी किया। फिर पंजाब पुलिस में आए। बॉडी बिल्डिंग में पंजाब-उत्तर भारत चैंपियन बने। लेकिन आगे करने की ललक कम नहीं पड़ी। गांव से पंजाब आए, तो पता चला कि इसके आगे भी दुनिया है। वर्ष 2000 में कुश्ती सीखनी शुरू की। अंग्रेजी की कमजोरी, खाली जेब और घर नहीं होने जैसी कई चुनौतियां थीं। ऐसे में अमरीका में कई मुश्किलें आई।
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पैसे की जैसे-तैसे व्यवस्था कर 2001 में जापान पहुंचे, जहां तीन साल कुश्ती करते हुए पैसा कमाया और डब्ल्यूडब्ल्यूई से भी मुश्किल कुश्ती सीखी। डब्ल्यूडब्ल्यूई के बड़े पहलवान वहीं से सीख कर आए हैं। वहां उन्होंने कुश्ती कर पैसे कमाएं। इसी दरमियान हॉलीवुड की फिल्मों में भी काम किया। खली के मुताबिक, डब्ल्यूडब्ल्यूई में उनकी फाइट से पापा-मम्मी डरते थे। लेकिन लोगों ने उनकी जीत के बाद पैरेंट्स को बताया कि डरने की जरूरत नहीं हैं। खली ने बताया कि डब्ल्यूडब्ल्यूई को टीवी पर देखा और मन किया कि वहां पहुंचूंगा। अलग-अलग एकेडमी में ई-मेल भेजने के बाद प्रशिक्षण का बुलावा आया।
मैं भगवान को मानने वाला हूं, लेकिन मुझे पंजाब पुलिस में पहलवानी में पहुंचने से रोका गया, गुमराह किया गया। उस समय डीजीपी एम.एस. भुल्लर थे। उन्होंने कहा कि ये कुश्ती टीम में कैसा रहेगा, लेकिन अन्य प्रशिक्षकों ने ओवरवेट बताकर मुझे दूर रखा। अब तक मैं कई पुरस्कार ले आता, उनकी गलतियों के कारण देश को भी नुकसान हुआ।

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