होता है भेदभाव
बकौल खली, डब्ल्यूडब्ल्यूई में भेदभाव होता है। मेरे साथ भी हुआ, लेकिन मैं ग्रेट खली हूं। मुझ पर असर नहीं हुआ। मेरी जगह कोई और होता तो कॅरियर खत्म हो जाता। डब्ल्यूडब्ल्यूई वाले भी भारत में मेरी फैन फॉलोइंग से हैरान थे। बच्चे से लेकर बूढ़े तक और मीडिया ने मुझे बहुत सहयोग दिया। दिल्ली में डब्ल्यूडब्ल्यूई वाले बुला रहे हैं, लेकिन मैं नहीं जा रहा।
सीडब्ल्यूई से तराशेंगे हीरे
खली ने बताया कि डब्ल्यूडब्ल्यूई के बाद अब वह देश के अच्छे पहलवान तैयार करना चाहते हैं, जो विश्व में भारत का नाम रोशन करें। डब्ल्यूडब्ल्यूई में हमारी सीडब्ल्यूई एकेडमी से कविता देवी गई हुई हैं। जालन्धर में वर्ष 2015 में सीडब्ल्यूई की शुरुआत हुई है। कई पहलवान आगे जाने के लिए तैयार हैं। राजस्थान के करीब 15 पहलवान और एक लडक़ी भी पलहवान हैं हमारी एकेडमी में। फिलहाल जोश भरे करीब 250 युवा तैयारी कर रहे हैं। हिन्दुस्तान में हम प्रतियोगिता कर युवाओं को नशे से दूर करेंगे। बाद में उसे ख्यातनाम पहलवान बनाएंगे, ताकि दुनिया में हमारा नाम हो।
मजदूरी की, पत्थर तोड़े, बॉडी बिल्डिंग से तय किया डब्ल्यूडब्ल्यूई का मुकाम खली ने बताया कि उन्हें कुश्ती और मुक्केबाजी पसंद थी, लेकिन पुलिस की किसी भी प्रतियोगिता में उन्हें केवल ओवरवेट होने के कारण नहीं लिया जाता था। संघर्ष के दिनों में उन्होंने मजदूरी की, पत्थर तोडऩे का काम भी किया। फिर पंजाब पुलिस में आए। बॉडी बिल्डिंग में पंजाब-उत्तर भारत चैंपियन बने। लेकिन आगे करने की ललक कम नहीं पड़ी। गांव से पंजाब आए, तो पता चला कि इसके आगे भी दुनिया है। वर्ष 2000 में कुश्ती सीखनी शुरू की। अंग्रेजी की कमजोरी, खाली जेब और घर नहीं होने जैसी कई चुनौतियां थीं। ऐसे में अमरीका में कई मुश्किलें आई।