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रिश्ते टूटने की एक बड़ी वजह धैर्य की कमी है, जिससे कुछ समय बाद कपल्स का एक-दूसरे के प्रति प्यार व आकर्षण कम हो जाता है, यही वजह है कि लव मैरिज करने वाले भी आसानी से तलाक़ ले रहे हैं। अब प्री-वेडिंग शूट नहीं होगा क्यो ियह हिन्दू संस्कृति के खिलाफ है इसको लेकर माहेश्वरी समाज की शादियों में अब प्री-वेडिंग शूट देखने को नहीं मिलेगा। यह निर्णय गुजरात के सोमनाथ में हुई अखिल भारत वर्षीय माहेश्वरी महासभा की कार्यकारी मंडल की बैठक में सर्व सम्मति से लिया गया। समाज के पदाधिकारियों का मानना है कि प्री-वेडिंग शूट हिंदू संस्कृति के अनुरूप नहीं है।वेलेंटाइन डे से पहले युवक ने पत्नी को दी ऐसी सजा,लाइफ में कभी नहीं भूल पाएगा वो पल
ये एक कुरीति है और इवेंट मैनेजमेंट वालों ने इसे बढ़ावा दिया है। प्री-वेडिंग शूट से निजता खत्म हो रही है, साथ ही शादियां भी टूट रही हैं। ग्वालियर माहेश्वरी जिला अध्यक्ष मोहन माहेश्वरी ने कहा, निर्णय को यहां लागू कराया जाएगा। दूसरे समाज में भी प्रयास करेंगे।350 साल पुराना किला जिसके दरवाजे से आज भी टपकता हैं खून!,पढि़ए किले की अनसुनी कहानी
समझाइश से रोकरोक के बारे में पदाधिकारियों का कहना है कि समाज में जबरन रोक नहीं लगाई जाएगी। इसके लिए प्रदेश सभा, जिला सभा, तहसील सभा, नगर सभा में प्रचार-प्रसार करके देश भर में पालन कराया जाएगा। समाज के लोगों को समझाइश दी जाएगी और फिर भी जो लोग नहीं मानेंगे वहां सिर्फ लिफाफा देकर लौट आएंगे।
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कमज़ोर होते रिश्ते भी है बड़ी वजह
गांवों के मुक़ाबले महानगरों में तलाक़ के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं। एक सर्वे के अनुसार,1960 में सालभर में जहां तलाक़ के एक या दो मामले ही आते थे, वहीं 1990 तक ये आंकड़ा 1000 को पार कर गया. 2005 में फैमिली कोर्ट में तलाक़ के 7 हज़ार से भी ज़्यादा मामले दजऱ् थे. ताज़ा आंकड़ों के अनुसार,ग्वालियर में हर साल तलाक के 1 हजार केस दजऱ् हो रहे हैं, वहीं अन्य शहरों में इनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है। शहर के एडवोकेट गौरव गुप्ता ने बताया कि तलाक़ लेने वालों में 25-35 साल के कपल्स की संख्या ज़्यादा है. मैरिज काउंसलर के मुताबिक, “आजकल के युवा शादी को कमिटमेंट की बजाय कन्वीनियंट (सुविधाजनक) रिलेशनशिप मानते हैं. जब तक सहजता से रिश्ता चलता है वो चलाते हैं और जब उन्हें असुविधा महसूस होने लगती है, तो बिना किसी गिल्ट के झट से रिश्ता तोड़ देते हैं.” कुछ जानकार टूटते रिश्तों के लिए शहरों में तलाक़शुदा महिलाओं को मिल रही स्वीकार्यता को भी जि़म्मेदार मानते हैं।
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साइकोलॉजिस्ट राजेंद्र शर्मा ने बताया कि तलाक़ को अब लोग कलंक नहीं मानते पहले तलाक़शुदा महिलाओं को घर तोडऩे वाली कहकर आस-पड़ोस वाले और नाते-रिश्तेदार ताने मारते थे। इतना ही नहीं, माता-पिता भी तलाक़शुदा बेटी को अपनाने से कतराते थे, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। तलाक़शुदा महिलाएं अब समाज से नजऱें चुराकर नहीं, बल्कि गर्व से सिर उठाकर जी रही हैं।आई लव यू बोल देना ही इस बात का सबूत नहीं कि पति-पत्नी के प्यार की डोर मज़बूत है। महानगरों में जहां वर्किंग कपल्स की तादाद दिनों दिन बढ़ती जा रही है, उनके बीच प्यार व विश्वास उतना ही कम होता जा रहा है। घर लेट से आने या फोन न उठाने पर पति-पत्नी दोनों को ही लगने लगता है कि पार्टनर का किसी और से संबंध है इसलिए वो उन्हें नजऱअंदाज़ कर रहा है फिर शक़ का यही बीज उनके रिश्तों को खोखला कर देता है। कई कपल्स तो अपने साथी की हर हरकत पर नजऱ रखने के लिए उनके पीछे जासूस लगाने से भी नहीं हिचकिचाते. विश्वास ही शादी की बुनियाद है, अगर बुनियाद ही कमज़ोर हो जाए, तो शादी टिक पाना मुश्किल हो जाता है।
श्याम सोनी, सभापति, अखिल भारतवर्षीय माहेश्वरी महासभा
बिज़ी लाइफस्टाइल के कारण पति-पत्नी के पास एक-दूसरे के लिए व़क्त ही नहीं रहता। कभी-कभी तो हफ्तों-महीनों तक वे एक-दूसरे से सुकून से बात तक नहीं कर पाते है ऐसे में उनके लिए एक-दूसरे को समझना मुश्किल हो जाता है,जिससे उनमें भावनात्मक दूरियां बढऩे लगती हैं और रिश्ता टूटने की कगार पर पहुंच जाता है। औरतों से बहुत ज़्यादा उम्मीद की जाती है पहले वो चुपचाप सब कुछ सह लेती थीं,लेकिन अब वो हिम्मत करके बोल रही हैं। जब बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता है, तो वो रिश्ता ख़त्म करने में ही भलाई समझती हैं। वैसे भी जिस रिश्ते में तिल-तिलकर रोज़ मरना हो उसे तोड़ देना ही बेहतर है।