रमेश ने वर्ष 2013 में यह सब शुरू किया। जमीन तैयार कर चार हजार स्क्वायर मीटर पर शेड नेट हाउस तैयार किया, लेकिन यहां तक बिजली नहीं थी। सरकारी अनुदान से तीन एचपी का सोलर पम्प लगवाया। पानी की कमी महसूस हुई तो ड्रिप सिस्टम लगवाया। पहली फसल में टमाटर बोए। अगले ही साल चैरी टमाटर लगाए जो
जयपुर के मॉल में खूब बिके। फिर खीरा ककड़ी भी जोड़ी और पिछले साल शिमला मिर्च पर हाथ आजमाया। रमेश बताते हैं, दो बीघा पर फैले शेड नेट हाउस में प्रतिवर्ष 2 से तीन फसलों की बुवाई करते हैं। बागवानी और फसलों से सालाना छह से सात लाख तक की कमाई हो रही है। उनके प्रयोगों में नींबू, अमरूद सहित कई किस्में शामिल हैं और अब हर्टीकल्चर में भविष्य तलाश रहे हैं। गेंदा के फूल की खेती में उन्हें मुनाफा हुआ, जिसकी डिमांड त्योहारों में रहती है।
READ MORE: यहां रहस्यमयी तरीके से हर दिन हो रही पशुओं की मौत, आखिर क्या है इन मौतों का राज गेंदा फूल ने बदली किस्म
गेंदा की फसल ढाई से तीन माह में तैयार हो जाती है। दो से तीन सिंचाई की जरूरत रहती है। प्रति बीघा ढाई से तीन क्विंटल उपज मिलने के साथ बाजार में यह 70 से 80 रुपये प्रतिकिलो तक बिक जाता है। इलाके के श्रमिकों को भी
रोजगार मिल जाता है। वह दूसरे किसानों को भी इस राह पर ला रहे हैं, जो पारंपरिक खेती से जुड़े हैं। इसके लिए जब-तब विशेषज्ञों को भी बुलाकर किसानों से उनकी बातचीत करवाते हैं।