'स्व' टंकित करने में स + हलन्त +व ही प्रोसेस होता है = sa+(-a)+wa
यदि आधे अक्षर और 'अ' की मात्रा निराकार(invisible) और कण रूप में कोडित होती
तो स्व = s+w+a = स् (आधे रूप में खड़ी पाई रहित) + व् (आधे रूप में खड़ी पाई रूप
में) + अ (खड़ी पाई रूप में) ही टंकित/प्रोसेसिंग करना पड़ता।
यदि मूल व्यञ्जनों को यूनिकोड में शामिल कर लिया जाता तो विण्डोज के USP (Unicode Script Processor) की आवश्यकता ही न होती।
इसीलिए मूल व्यंजनों (अ-ध्वनि रहित व्यंजनों) के कूट-निर्धारण की नितान्त आवश्यकता है। इसके बिना पाणिनी के शब्द रूप, प्रत्यय विधान, विभक्ति विधान के समस्त वैज्ञानिक सूत्रों की कम्प्यूटिंग गलत हो जाती है, लिपि ही अपंग हो जाती
है।
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देवनागरी का टंकण एवं प्रदर्शन एक तीन चरणों की व्यवस्था से होता है जिसे हरिराम जी त्रिआयामी समस्या बताते हैं। इस त्रिआयामी समस्या के कारण ही अक्सर विभिन्न सॉफ्टवेयरों में जैसे फोटोशॉप हिन्दी बिखरी हुयी दिखती है।
मित्रों वर्तमान में यूनिकोड में केवल पूरे अक्षर (अकार युक्त व्यञ्जन) तथा हलन्त ही कोडित हैं। मूल व्यञ्जन (शुद्ध व्यञ्जन, अ-ध्वनि रहित, जिन्हें लेखन में हम आमतौर पर हलन्त लगा कर दिखाते हैं) कोडित नहीं हैं। इसकी अनेक हानियाँ हैं, मैं इनमें से एक हानि टैक्स्ट साइज का बड़ा होना बता रहा हूँ, बाकी हानियों पर हरिराम जी से निवेदन है कि प्रकाश डालें।
स्व दो इकाई स्थान कैसे छेकता है, कृपया स्पष्ट करें । वर्तमान स्थिति या संशोधित किसी भी रूप में हो इसे तीन इकाई स्थान छेकना चाहिए ।
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स्व दो इकाई स्थान कैसे छेकता है, कृपया स्पष्ट करें । वर्तमान स्थिति या संशोधित किसी भी रूप में हो इसे तीन इकाई स्थान छेकना चाहिए ।
----नारायण प्रसाद
हरिराम जी ने जो लिखा उसका उत्तर न तो आपने दिया और न उन्होंने । "व् (आधे रूप में खड़ी पाई रूप में) " का क्या मतलब है ? क्या यह टंकण की अशुद्धि है ?
इतना ही नहीं हरिराम जी के और आपके विचार में विरोधाभास दिखता है । कृपया मेरे पूर्व सन्देश को फिर से पूरा पढ़ें ।
--- नारायण प्रसाद
2010/8/16 ePandit | ई-पण्डित <sharma...@gmail.com>स्व दो इकाई स्थान कैसे छेकता है, कृपया स्पष्ट करें । वर्तमान स्थिति या संशोधित किसी भी रूप में हो इसे तीन इकाई स्थान छेकना चाहिए ।
----नारायण प्रसादमैंने दो इकाई यह मान कर लिखा है कि पूरा अक्षर 'व' (अकार सहित) तो पहले से है ही, 'स्' (शुद्ध व्यजञ्न) भी हो जाय तो दोनों से बना 'स्व' दो इकाई स्थान लेगा। क्योंकि मेरा अर्थ यह नहीं कि जो पूरे अक्षर (अकार सहित) यूनिकोड में शामिल हो चुके हैं, उन्हें हटाया जाय। उन्हें हटा भी नहीं सकते।
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हिन्दी, संस्कृत, मराठी आदि के शब्दों में आधे अक्षर और पूरे अक्षर - दोनो ही आते हैं। इसलिये यदि मूल व्यंजनों को एक कोड दिया जाता तो जहाँ-जहाँ पूर्णाक्षर आते वहाँ-वहाँ दो यूनिकोड की जरूरत पड़ती और जहाँ अर्धाक्षर होते वहां केवल एक। इससे तो मुझे लगता है कि वर्तमान प्रणाली में कम 'स्पेस' में ही काम चल जाता है और प्रस्तावित परिवर्तन के कारण अधिक जगह लगेगी। ऐसा इसलिये है कि मेरा मानना है कि अर्धाक्षर अपेक्षाकृत कम होते हैं।
पर जब हिन्दी की बारी आती है तो सब चीज टूट फूट जाता है. कारण ? हिन्दी को दिखाने के लिए complex language layout engine की जरूरत होती है.
मैं यह भी नहीं मानता कि 'बिखरे हुए' वर्ण आदि की समस्या देवनागरी के यूनिकोड के गलत निर्धारन के कारण है। यह तो प्रोग्राम की कमी या 'बग' के कारण थी / है।
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यदि आप बिखरी हुयी हिन्दी देखें तो पायेंगे कि बिखरती या तो आधे अक्षर हैं या मात्रायें या फिर संयुक्त अक्षर। यदि यूनिकोड में देवनागरी के मूल व्यञ्जन तथा संयुक्ताक्षर आदि कूटबद्ध किये जाते तो फिर उन्हें जोड़कर दिखाने हेतु USP की आवश्यकता न होती।
२. फ्री यूनीकोड फोंटअभी भी सुन्दर यूनीकोड फोंट उपलब्ध नहीं हैं. कम से कम कुछ दर्जन तो फोंट उपलब्ध होने ही चाहिए जिसे लोग मुफ्त में प्रयोग कर सकें.
अब बात यह है की या कदम सरकार को ही उठाना पड़ेगा. एक आम आदमी एक सीमा तक ही चीजें कर सकता है. नीती बनाना , उसको लागू करने का काम तो सरकार का ही होता है.यूनीकोड के वर्त्तमान standard से मैं बहुत कुछ खुश हूँ. अब उन लोगों ने अपना काम कर दिया है पर अब हम लोगो को अपना काम करना पड़ेगा. हमें वह सारे टूल फ्री में उपलब्ध करना होगा जिससे यूनीकोड हिन्दी का प्रसार हो सके.
आम आदमी एक सीमा तक ही चीजें कर सकता है. नीती बनाना , उसको लागू करने का काम तो सरकार का ही होता है.
हमें वह सारे टूल फ्री में उपलब्ध करना होगा जिससे यूनीकोड हिन्दी का प्रसार हो सके.
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