पुलिस व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता

Afeias
06 Dec 2016
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pm-at-dgp-meeting-684-9Date: 06-12-16

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देश की पुलिस आज भ्रष्टाचार और गैरजिम्मेदारी की प्रतिच्छवि बन चुकी है। दरअसल पूरी पुलिस व्यवस्था में ही घुन लग चुका है। एक सशक्त व्यवस्था के अभाव में कुछ गिने-चुने षड़यंत्रकारी लोग पुलिस व्यवस्था को न केवल बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार हैं, बल्कि वे इसका अपराधीकरण करने से भी बाज़ नहीं आ रहे हैं। ऐसे में पुलिस के अच्छे काम तो कहीं नजर ही नहीं आते। सामने आता है, तो बस पुलिस का विकृत-चेहरा। ऐसा चेहरा, जो भ्रष्ट, असंवेदनशील, असक्षम और गैर जिम्मेदार है।

2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने स्मार्ट पुलिस का सपना देखा था, जिसके हर अक्षर में पुलिस में सुधार का एक संदेश छुपा है। SMART  यानी ऐसी पुलिस व्यवस्था जो कड़क लेकिन संवेदनशील (Sensetive),आधुनिक (Modern),सतर्क और जिम्मेदार (Alert and Accountable) विश्वसनीय (Reliable), तकनीकी क्षमता युक्त एवं प्रशिक्षित (Techno-savy and Trained)  हो।

  • इस मिशन की सफलता के लिए पुलिस को केवल तकनीक और स्मार्ट फोन एप से लैस करना ही पर्याप्त नहीं होगा। इसके लिए और भी कदम उठाने होंगे –
    • पुलिस व्यवस्था में सबसे पहले दृष्टिकोण का परिवर्तन और कौशल विकास बहुत जरूरी है।
    • पुलिस को जनता के प्रति उत्तरदायित्व, मानवाधिकारों के प्रति सम्मान और एकता व अखण्डता की रक्षा को मुख्य लक्ष्य मानना होगा। इन मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता दिखाकर ही पुलिस महिलाओं, दलितों एवं समाज के पिछड़े वर्गों की रक्षा कर सकती है।
    • पुलिस को केवल तकनीकों से लैस करके संवेदनशील और जनता का मित्र नहीं बनाया जा सकता। अभी तक पुलिस में ‘चलता है’ का रुख अपनाकर ही इस तंत्र को इतना गिरा दिया है।
    • स्मार्ट पुलिस के स्वप्न को साकार करने के लिए पुलिस नेतृत्व को पूरी शक्ति देनी होगी, जिससे वह अपने तंत्र में सुधार लागू कर सके। यह नेतृत्व ऐसा हो, जो इन सुधारों के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी भी ले सके।
    • पुलिस को राजनीति और नौकरशाही के चंगुल से बाहर निकालना ही पुलिस नेतृत्व को समस्त शक्ति देने का सीधा-सा अर्थ होगा। रोज-रोज के स्थानांतरण एवं पुलिस कार्यवाही में राजनैतिक दखल नेे पुलिस-व्यवस्था को बहुत तोड़ा है।
    • पुलिस भर्ती और प्रशिक्षण के लिए देशव्यापी ‘एक्शन प्लान’ बनाने की आवश्यकता है। यह समस्त अभियान तकनीक को केन्द्र में रखकर चलाया जाए। एक ऐसे पुलिस वाले से हम ईमानदारी की उम्मीद नहीं रख सकते, जो स्वयं रिश्वत देकर पुलिस में भर्ती हुआ है। इसलिए पूरी भर्ती व्यवस्था में पारदर्शिता लानी होगी।
    • प्रधानमंत्री ने पुलिस प्रशिक्षण में भावनात्मक पक्ष पर जोर दिए जाने की बात को स्वीकार किया है। उनके अनुसार सामान्य मनोविज्ञान एवं व्यावहारिक मनोविज्ञान को भी पुलिस प्रशिक्षण का अनिवार्य अंग बनाया जाना चाहिए। दरअसल, अभी तक पुलिस प्रशिक्षण के नाम पर कई राज्य सदियों पुराना पाठ्यक्रम ही चला रहे हैं।
    • पुलिस सुधार के दौरान अधीनस्थ पुलिसकर्मियों के जीवन-स्तर और कार्यदशा की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। सेवा के दौरान मृतकों के परिजनों के पुनर्वास एवं क्षतिपूर्ति की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए।

परिवर्तन तभी किए जा सकते हैं, जब पुलिस के आला अधिकारी स्वयं इसमें रुचि लें। उन्हें इस बात को स्वीकार करना होगा कि स्मार्ट पुलिस वाकई एक जरूरत है।

टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एन. रामचंद्रन के लेख पर आधारित।

 

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