यह विचार मुख्य वक्ता माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विवि, नोयडा के निदेशक प्रो. अरुण भगत ने सोमवार को सुखाडिय़ा विवि के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग और राजस्थान साहित्य अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में डिजिटल मीडिया और साहित्य विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में व्यक्त किए। स्वर्ण जयंती अतिथि गृह सभागार में हुई संगोष्ठी में उन्होंने कहा कि परिष्कार की परम्परा समाप्त होती जा रही है। उन्होंने डिजिटल दौर की पत्रकारिता के सामने 16 चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि डिजिटल मीडिया ने साहित्य का लोकतांत्रिककरण कर दिया है। विशिष्ट अतिथि मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के अध्यक्ष देवेंद्र दीपक ने कहा कि डिजिटल साहित्य में संशोधन का साहित्य नहीं है। अपनी रचना का त्रुटिदोष दूर करना संभव नहीं है। राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ. इन्दुशेखर तत्पुरुष ने कहा कि नया डिजिटल माध्यम हमारी साहित्यिक रचनात्मकता को भी समृद्ध करेगा। प्रो साधना कोठारी ने कहा कि तमाम खामियों के बावजूद डिजिटल प्लेटफार्म समय की मांग और जरूरत है। विभागाध्यक्ष डॉ कुंजन आचार्य ने कहा कि डिजिटल सशक्तीकरण से हम नए युग के सूत्रपात के साक्षी हो रहे हैं। नवसृजन के इस दौर के कुछ खतरे भी हैं जिनका हम सबको मिलकर सामना करते हुए आगे बढऩा होगा।राजस्थान विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग के डॉ मनोज लोढ़ा ने कहा कि अच्छा और मौलिक साहित्य सदा अमर रहेगा।
READ MORE : उदयपुर में जिपलाइन में हवा में टकराए दो युवक, बाल-बाल बची मासूम… सुरक्षा इंतजाम पर लोगों ने उठाए सवाल.. पत्रकार डॉ. संदीप पुरोहित ने कहा कि आज हमारे कार्य-व्यवहार और यहां तक कि संस्कार में हर तरफ अंग्रेजी नजर आ रही है। हिन्दी भाषा पर प्रहार हो रहा है। यह चिंतन का विषय है कि हम अपने ही देश की क्षेत्रीय भाषाओं से जुड़ नहीं पा रहे हैं। उप निदेशक सूचना एवं जनसंपर्क गौरीकांत शर्मा ने कहा कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। डिजिटल मीडिया में भी ऐसा ही है।