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इंदौर

जब अंग्रेजों ने भारत के नक्शे पर रखी थी इंदौर की तख्ती, बोली ऐसी बात कि चौंक गए महात्मा गांधी

आजादी से पहले दो बार इंदौर आए थे महात्मा गांधी
बापू के स्वच्छ भारत के सपने को इंदौर ने पूरी तरह किया आत्मसात
शहर के इतिहासकार ने संवार रखी है उनकी कई यादें

इंदौरOct 01, 2019 / 05:40 pm

हुसैन अली

जब अंग्रेजों ने भारत के नक्शे पर रखी थी इंदौर की तख्ती, बोली ऐसी बात कि चौंक गए महात्मा गांधी

जब अंग्रेजों ने भारत के नक्शे पर रखी थी इंदौर की तख्ती, बोली ऐसी बात कि चौंक गए महात्मा गांधी

इंदौर. स्वच्छ भारत का इरादा, इरादा कर लिया हमने….इस गाने के बोले देश के हर कोने में गूंजते हैं। बापू ने स्वच्छ भारत का सपना देखा था, जिसे पूरी तरह आत्मसात इंदौर ने किया। तीन वर्षों से इंदौर स्वच्छता में देश में सिरमौर है। बापू भी चाहते थे कि देश में कहीं गंदगी न हो, उनके इस सपने को इंदौर ने पूरी शिद्दत से निभाया। शहर में अब गंदगी नहीं दिखती। महात्मा गांधी का इंदौर से खासा जुड़ाव रहा है। आजादी के पहले बापू ने दो बार इंदौर की यात्राएं की। बापू की यादें इंदौरवासियों के दिल में आज भी ताजा हैं। शहर के इतिहासकार जफर अंसारी ने अपने म्यूजियम में गांधी जी की कई चीजें और तस्वीरें सहेज रखी हैं। अंसारी का कहना है कि इंदौर बापू की स्वच्छ भारत अभियान और हिंदी भाषा के प्रचार का साक्षी रहा है।
जब अंग्रेजों ने भारत के नक्शे पर रखी थी इंदौर की तख्ती, बोली ऐसी बात कि चौंक गए महात्मा गांधी
पहली बार 1918 : बापू ने बग्घी में की इंदौर की सैर

आजादी के पहले बापू दो बार इंदौर आए। पहली बार 1918 और दूसरी बार 1935 में पहुंचे। 1918 में इंदौर आकर अष्टम हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिस्सा लिया। हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए गांधीजी इंदौर रेलवे स्टेशन पर पहुंचे तो युवाओं में खासा उत्साह देखा गया। बापू को बग्घी में बैठाकर युवा जुलूस के रूप में रेलवे स्टेशन, राजबाड़ा और खजूरी बाजार से नेहरू पार्क लेकर पहुंचे। नेहरू पार्क में उन्होंने 15 हजार लोगों के जनसमूह को संबोधित किया। हिन्दी के प्रचार के लिए होलकर राजघराने के तुकोजीराव पंवार तृतीय ने उन्हें 10 हजार रुपए दान दिए थे।
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दूसरी बार 1935 : कृषि कॉलेज में सीखा खाद बनाना

23 अप्रैल 1935 को हिन्दी साहित्य सम्मेलन में गांधीजी बतौर अध्यक्ष शामिल हुए। हिन्दी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता के बाद इंस्टिट्यूट ऑफ प्लांट इंडस्ट्री (कृषि कॉलेज) पहुंचे। यहां उन्होंने इंदौर मैथड से कम्पोस्ट (खाद) बनाना सीखा। इसका जिक्र उन्होंने अपनी किताब ‘ग्राम स्वराज’ व कई लेखों में किया। यहां से गांधीजी हिंदी साहित्य समिति पहुंचे। कृष्णपुरा पुल स्थित दत्त मंदिर पर उन्होंने सुबह 5 बजे सभा संबोधित की।
जब अंग्रेजों ने भारत के नक्शे पर रखी थी इंदौर की तख्ती, बोली ऐसी बात कि चौंक गए महात्मा गांधी
कचरे से खाद बनता देख चकित हो गए गांधीजी

इंदौर में बनने वाला कपड़ा दुनियाभर में मशहूर था। इसके लिए उच्च गुणवत्ता वाला कपास चाहिए था और उसकी पैदावार के लिए अच्छी खाद की जरूरत होती थी, जो उस समय होल्कर स्टेट द्वारा कचरे से बनाई जाती थी। कॉलेज के प्लांट इंस्टीट्यूट में खाद बनाने के लिए कई प्रयोग किए जा रहे थे। यह प्रक्रिया देश ही नहीं विदेश में भी मशहूर थी। यह देख बापू चकित रह गए। उन्होंने देशभर में इंदौर के गुणगान किए। कॉलेज में आज भी गांधीजी की वे तस्वीरें लगी हैं।
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भारत के नक्शे पर इंदौर देख चौंक गए थे बापू

1932 में लंदन में हुए तीसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे गांधीजी ने वहां एक कृषि मेले का उद्घाटन किया। मेला भ्रमण के दौरान उनकी नजर एक स्टॉल पर पड़ी, जिसमें भारत का नक्शा था, लेकिन तख्ती इंदौर की टंगी हुई थी। गांधीजी ने कहा, भारत के नक्शे पर इंदौर क्यों लिखा है, यह तो भारत का महज एक शहर है। इस पर अंग्रेजों ने बताया, जैविक खाद बनाने की इंदौर मैथड पूरी दुनिया में पहचान रखती है, इसलिए हमारे लिए इंदौर से ही भारत की पहचान है। इस दौरान गांधी जी ने तय किया, इसे समझने इंदौर जरूर जाएंगे।
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जॉन हार्वर्ड को इंदौर मैथड बनाने का श्रेय

जैविक खाद की इंदौर मैथड बनाने का श्रेय कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के गोल्ड मेडलिस्ट व बॉटनी के प्रोफेसर अल्बर्ट हार्वर्ड को जाता है, जिन्हें भारतीय खेती को समझने के लिए इंदौर भेजा गया था। वह 21 साल तक देशभर में घुमते रहे। वह खेती के भारतीय तरीके देखकर अभिभूत हो गए। 1923 में वह इंदौर आए, यहां राजा शिवाजी राव होलकर ने उन्हें जमीन दी, जिस पर उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट इंडस्ट्री की स्थापना की और जैविक खाद बनाने का इंदौर मैथड विकसित की।
इंदौर आकर हिन्दी को बनाया आजादी का हथियार

मप्र सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष चिन्मय मिश्र का कहना है, महात्मा गांधी का इंदौर आना अनायास नहीं था। आजादी के पहले के साहित्याकारों में राष्ट्रीयता का भाव था। गांधीजी हिन्दी साहित्य सम्मेलन में इसलिए आए थे, क्योंकि वे हिन्दी को संपर्क भाषा मानते थे। वे स्वयं गुजराती भाषी थी, लेकिन बड़ा तबका हिन्दी बोलता और समझता था। आजादी के लिए उन्होंने हिन्दी को हथियार बनाया। इंदौर से उन्होंने दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार-प्रसार को बढ़ाते हुए देश में फैलाने का प्रण लिया। हिन्दी आधुनिक भाषा होने के बावजूद देश को एक सूत्र में पिरोने की ताकत रखती थी। दूसरी इंदौर यात्रा में भी गांधी जी हिन्दी साहित्य समिति के आयोजन में बतौर अध्यक्ष पहुंचे। पहली और दूसरी यात्रा में लंबा समय अंतराल था। पहले जब वे आए तो सिर पर साफा, धोती-कुर्ता पहनकर आए थे लेकिन दूसरी बार तन पर सिर्फ धोती थी। यह एक बड़ा अंतर था, जो उनकी जीवन यात्रा के बढ़ते पड़ाव का संकेत था।
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