केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ हर्षवर्धन स्वयं एक चिकित्सक हैं। सरकार का कामकाज देखने के साथ वे नई बीमारियों, उनके इलाज और नए शोध व अनुसंधान के बारे में लगातार अपना ज्ञानवर्धक करते रहते हैं। डॉ हर्षवर्धन ने इस महामारी के खतरे, आशंकाओं और आगे की राह के बारे में अमर उजाला के शरद गुप्ता से विस्तार से बात की। मुख्य अंश….
कोरोना संक्रमण के खिलाफ देश ने शुरू से ही निर्णायक लड़ाई शुरू कर दी थी। हमने कोविड के संक्रमण पर काबू पाने के लिए त्रिस्तरीय विशेष अस्पतालों और केंद्रों की व्यवस्था बनाई। इनमें रोग की गंभीरता के आधार पर मरीजों को दाखिल किया जा रहा है। आज देश में 919 विशेष कोविड अस्पताल, 2036 विशेष कोविड स्वास्थ्य केंद्र और 5739 कोविड केयर सेंटर हैं। इसके अलावा 9416 क्वारंटीन केंद्र भी कार्यरत हैं। ये सभी अस्पताल, स्वास्थ्य केंद्र और कोविड केयर सेंटर सुविधा संपन्न हैं। इनमें पर्याप्त संख्या में आइसोलेशन बिस्तर, आईसीयू बिस्तर, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन व्यवस्था और डॉक्टरों तथा स्वास्थ्यकर्मियों के लिए निजी सुरक्षा उपकरण हैं। इस व्यवस्था से ही हम रोगियों के स्वस्थ होने की दर बढ़ाकर 34 प्रतिशत तक ले गए हैं। इसका अर्थ है कि एक तिहाई से अधिक मरीज स्वस्थ होकर नया जीवन व्यतीत करने के लिए अपने घरों में जा रहे हैं।
हमारे यहां केवल 0.35 प्रतिशत रोगियों को वेंटिलेटर की आवश्यकता हो रही है। लगभग 3.1 प्रतिशत रोगियों को आईसीयू बिस्तर की आवश्यकता हो रही है और 2.1 प्रतिशत से कम रोगियों को ऑक्सीजन की सहायता की आवश्यकता पड़ रही है। हमने मृत्यु दर को 3.2 प्रतिशत तक सीमित रखा है जबकि विश्व स्तर पर यह दर 6.9 प्रतिशत है। हमने कोरोना की जांच की 500 गुना बढ़ा दी है। लगभग 4 महीने पहले हमारे पास केवल एक प्रयोगशाला थी। आज हमारे पास 363 सरकारी और 146 श्रंखलायुक्त निजी प्रयोगशालाएं हैं। इस समय प्रतिदिन जांच करने की हमारी क्षमता एक लाख टेस्ट है। आज तक हमने लगभग कुल 20.42 लाख जांच की हैं। 4 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ऐसे हैं जहां आज तक एक भी मामला सामने नहीं आया। यह भी हमारी पुख्ता तैयारियों एवं सफलता का प्रमाण है।
हम इस महामारी को हराने में कब तक कामयाब होंगे?
मामले दोगुना होने में लगे समय के आधार पर मामलों के बढ़ने की गति का पता चलता है। 26 राज्यों की उपलब्ध मामलों की दोगुना होने की दर से स्पष्ट होता है कि 4 राज्यों में मामले दोगुना होने की दर 40 दिन से अधिक है। अन्य 5 राज्यों में यह दर 20 से 40 दिन है। इस तरह स्पष्ट है कि 9 राज्यों में मामलों के बढ़ने पर लगाम लगी हुई है। 13 राज्यों में यह दर 10 से 20 दिन है और शेष 4 राज्यों में यह दर 10 दिन से कम है। हम 5 राज्यों में मामलों की दोगुना होने की दर को सुधारने के लिए विशेष प्रयास कर रहे हैं। हमारा प्रयास है कि हम हर राज्य में उल्लेखनीय सुधार कर सकें।
आपके अनुसार कोरोना को काबू करने में सबसे बेहतर प्रदर्शन किस राज्य का रहा और सबसे कमजोर किस राज्य का? इसकी वजह क्या है?
निस्संदेह बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों में केरल, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक आदि राज्य रहे। सबसे पहला मामला केरल में आया। उनकी तैयारी सबसे बेहतर रही। इन राज्यों ने कांटैक्ट ट्रेसिंग, आइसोलेशन और इलाज में तत्परता बरती। जबकि कंट्रोल महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा मामले आए। मुंबई में दस लाख लोग धारावी की झुग्गी बस्तियों में रहते हैं। वहां बताते हैं लॉकडाउन का पालन भी ठीक प्रकार से नहीं किया गया।
क्या हमारे मेडिकल स्टाफ के लिए जरूरी मास्क, ग्लब्स और पीपीई किट उपलब्ध हैं? तो फिर कोरोना का इलाज कर रहे डॉक्टरों और नर्सों में संक्रमण की संख्या इतनी अधिक क्यों है?
जी हां, डाक्टरों और दूसरे मेडिकल स्टाफ के लिए निजी सुरक्षा उपकरणों यानि मास्क, ग्लब्स और पीपीई किट पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। आज हम प्रतिदिन 3 लाख से ज्यादा पीपीई किट देश में बना रहे हैं। हमने 'मेक इन इंडिया' के तहत 2.2 करोड़ पीपीई की खरीद के ऑर्डर दे दिए हैं। हमने 84 लाख से अधिक एन-95 मास्क राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों तथा केंद्रीय संस्थानों को वितरित किए हैं। इन्हें देश में बनाने के लिए 10 निर्माताओं का चयन कर 2.99 करोड़ मास्क खरीदने के ऑर्डर दे दिए हैं। यह दुखद है कि हमारे डॉक्टर एवं अन्य स्वास्थ्यकर्मी भी देश के विभिन्न स्थानों पर पूरी दुनिया की तरह संक्रमित हुए हैं। इन कोरोना योद्धाओं से हमें पूरी सहानुभूति है एवं उनके प्रति श्रद्धा एवं सम्मान का भाव है।
संक्रमित लोगों को अस्पताल से छुट्टी दिए जाने की शर्तों में ढील क्यों दी गई है?
कोरोना संक्रमण के मामलों के अभी स्थिरता की ओर आने में कुछ समय लग सकता हैं। इसे देखते हुए मंत्रालय के विशेषज्ञों ने विशेष दिशा-निर्देश बनाए हैं। अमेरिका और यूरोपियन क्षेत्र के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल ने भी इसी तरह की सलाह दी है। इसके अलावा आईसीएमआर ने भी 10 दिन के बाद सभी मरीजों के डेटा का अध्ययन करने के बाद नए दिशा-निर्देश की पुष्टि की है। आंकड़े बताते हैं कि इस मानदंड के आधार पर छुट्टी दिए गए मामले पर संक्रमण के फैलाव का जोखिम नहीं बढ़ा।
स्वदेशी टेस्टिंग किट बाजार में आने की संभावना कब तक है?
आईसीएमआर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे ने कोविड-19 एंटीबॉडी का पता लगाने के लिए स्वदेशी आईजीजी एलिसा कोविड कवच एलिसा जांच को विकसित किया है। इसके माध्यम से 150 मिनट में 90 नमूनों की जांच की जा सकेगी। दिल्ली में इसी सप्ताह में मैंने अति उन्नत, स्वचालित कोविड-19 की रियल टाइम पीसीआर जांच करने की कोबास-6800 मशीन राष्ट्र को समर्पित की है। यह मशीन 24 घंटे में 1200 नमूनों की जांच करने में सक्षम है। इस किट को बनाने के लिए विकसित प्रौद्योगिकी एक कम्पनी को हस्तांरित की गई है। हमें आशा है कि इसे बाजार में आने में अब ज्यादा समय नहीं लगेगा। इसके अलावा हमारे वैज्ञानिक स्वदेशी आरटी-पीसीआर किट एवं एंटीबॉडी टेस्ट किट बहुत ही शीघ्र उपलब्ध कराने का प्रयास कर रहे हैं।
कोरोना की वैक्सीन भारत में कब तक आने की आशा है? इसकी दवा हमें कब तक उपलब्ध हो सकती है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा विकसित कोविड-19 वैक्सीन प्रत्याशियों के प्रारूप में से सात का क्लीनिकल ट्रायल (नैदानिक मूल्यांकन) किया जा रहा है और अन्य 100 कैंडिडेट वैक्सीन पूर्व नैदानिक मूल्यांकन में हैं। भारत की सात कंपनियां भी वैक्सीन विकसित करने प्रयास कर रही हैं। आठ वैक्सीन नैदानिक चरण में हैं। लेकिन वैक्सीन को रोगियों तक पहुंचने में लंबा समय लग सकता है। इसलिये सोशल डिस्टेंसिंग सोशल वैक्सीन के रूप में काफी प्रभावी सिद्ध हो रही है। इसके अलावा रेमडेसिविर दवा के स्टारटिंग मैटिरियल की सिंथेसिस सीएसआईआर और भारतीय रसायन प्रौद्योगिकी संस्थान ने बना ली है। कोविड-19 के लिए एक अन्य दवा फाविपिराविर पर निजी क्षेत्र के साथ मिलकर सीएसआईआर, नैदानिक परीक्षण पर काम कर रहा है।
जिन आयुष दवाओं से कोरोना के इलाज का दावा हम कर रहे हैं क्या उनकी कोई टेस्टिंग हुई है?
चिकित्सा की आधुनिक पद्धतियों और आयुष के मध्य कोई प्रतिस्पर्धा नहीं बल्कि वे एक दूसरे के पूरक हैं। हाल ही में आयुष मंत्रालय के साथ चर्चा के बाद वैकल्पिक आयुष दवा का कोविड प्रभावित इलाकों में कार्यरत कर्मियों पर नैदानिक परीक्षण शुरू कर दिया गया है। आयुष औषधियों जैसे की अश्वगंधा, यष्टिमधु, गुडूची, पिप्पली, आयुष-64 का भी नैदानिक परीक्षण शुरू किया गया है।
हमारा उद्देश्य है कि देश और दुनिया के सामने आयुर्वेद की श्रेष्ठता को हम वैज्ञानिक तरीके से सिद्ध करें। आयुष मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए ‘संजीवनी ऐप’ के माध्यम से कोविड-19 की रोकथाम में आयुष मंत्रालय के परामर्श को स्वीकार करने और इस पर अमल करने के प्रभाव के आकलन का अध्ययन किया जाना है। इस तरह से मंत्रालय 50 लाख लोगों का डेटा तैयार कर रहा है।
कोरोना के डर की वजह से बहुत से अस्पतालों में कैंसर हृदय रोग या टीबी जैसी गंभीर बीमारियों के मरीजों का भी इलाज नहीं किया जा रहा है। इस बारे में क्या आपके कोई ठोस कदम उठाए हैं?
हमें शिकायत मिली थी कि डायलिसिस कराने वाले, श्वास लेने में कठिनाई महसूस करने वाले, ह्रदय रोगियों, गर्भवती महिलाओं और तत्काल रक्त चढ़वाने वाले रोगियों पर अस्पतालों में पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा था। इसी के बाद मैंने सभी अस्पतालों के चिकित्सा अधिकारियों को विशेष निर्देश दिए कि गैर- कोविड रोगियों के उपचार पर विशेष ध्यान दिया जाए और उन्हें ऐसी आवश्यक प्रक्रियाओं से वंचित ना किया जाए जिनपर तत्काल ध्यान दिए जाने की जरूरत है। हमारी सरकार सभी लोगों को आवश्यक स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने की अपनी जिम्मेदारी को भली भांति समझती है। देशभर के स्वास्थ्य मंत्रियों एवं स्वास्थ्य सचिवों के साथ विडियो कॉन्फ्रेंस में भी मैंने यह विषय रेखांकित किया है।
क्या कोरोना का पीक आ चुका है?
कहना मुश्किल है। लेकिन स्थिति नियंत्रण में है। आज तक बहुत से वायरस आए हैं लेकिन केवल स्मॉल पॉक्स और पोलियो को छोड़कर किसी भी वायरस का पूरी तरह खात्मा नहीं हो पाया है। कोविड-19 बहुत तेजी से फैला और इससे बहुत ज्यादा मौतें हुईं। लेकिन यदि ठीक प्रकार से मास्क लगाया जाए और दो फिट की दूरी का पालन किया जाए तो वायरस से दूर रहा जा सकता है।
कोरोना का कर्व कब तक सीधा हो पाएगा? तब तक देश में कितने संक्रमितों की संख्या होने की संभावना है?
सरकार निरंतर गंभीर प्रयास कर रही है कि मामलों के बढ़ने की दिशा को बदलकर इसे तेजी से कम किया जाए। देश में 3 मार्च, 2020 को मात्र 6 मामले थे जो पहली अप्रैल को बढ़कर 10800 के करीब हो गए। गौरतलब है कि निजामुद्दीन में मरकज में रह रहे इस संस्था के 2200 से अधिक सदस्यों को बाहर निकाला गया। वे अलग अलग समूह में देश के विभिन्न प्रान्तों के अनेक शहरों में गए। इस घटना से मामलों के बढ़ने की संख्या में देशभर में तेजी आई। इस लोगों ने न तो लॉकडाउन की परवाह की और न ही फिजिकल डिस्टेंसिंग के निर्देशों का पालन किया। इसके बावजूद हमारा कर्व स्थिर है। कई विदेशी विशेषज्ञों ने मई के महीने में हमारे देश में 300 मिलियन मामले होने की आशंका व्यक्त की थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हम लगातार स्थिति पर नज़र रखे हैं।
हमारे यहां संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है जबकि म्यांमार, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका और यहां तक कि पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों में भी संक्रमण की गति काफी कम क्यों है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिचुएशन रिपोर्ट संख्या 107 और 114 के अनुसार पिछले सात दिनों में नेपाल (5 दिन), भूटान (उपलब्ध नहीं), पाकिस्तान (11.6 दिन) और बांग्लादेश (11.5 दिन) में मामले दोगुना होने की दर भारत से कम है जबकि भारत की दर (12.5 दिन) बनती है। केवल श्रीलंका (34.1 दिन) और म्यांमार (45.5 दिन) की दर भारत से अधिक है।
लेकिन इन देशों में संक्रमित लोगों की संख्या भारत से बहुत कम है?
मामले दोगुना होना एकमात्र पैमाना नहीं है। ठीक है। डब्लूएचओ ने कई पैमाने बनाए हैं। लेकिन भारत जैसे 130 करोड़ आबादी वाले देश की तुलना इन छोटे देशों से नहीं हो सकती। कोरोना से लड़ाई में देश का नेतृत्व आप कर रहे हैं। लेकिन सिर्फ पर्दे के पीछे रहकर। आप मेरे व्यक्तित्व को वर्षों से पहचानते हैं। मेरा शुरू से ही एक स्वयंसेवक का भाव रहा है और केवल अपने कर्म पर ही फोकस करना मेरा स्भाव है। मैं मानवता एवं राष्ट्रसेवा को सर्वोपरि मानता हूं। मंत्री होने के बाद भी मुझे एक ‘लो-प्रोफाइल’ कार्यकर्ता के रूप में काम करना ज्यादा संतोष देता है। इस समय मेरे पास तीन मंत्रालय का प्रभार है। पिछले तीन महीनों से कब सुबह से रात होती है पता ही नहीं चलता। हमारा मंत्रालय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के कुशल नेतृत्व और स्पष्ट मार्गदर्शन में कार्य कर रहा है।