निजीकरण कितना सही कितना गलत?

निजीकरण (Privatization) की जब भी बात की जाती है तो हमारा समाज दो भागों में बंटा हुआ नजर आता है। कुछ लोग इसे सही ठहराते हैं तो वहीं सरकारी विभागों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े लोग इसका जमकर विरोध करते हैं। 

आइए आज जानने की कोशिश करते हैं कि निजीकरण (Privatization) किया जाना कितना सही और कितना गलत है? Privatization in India is good or bad

हम में से हर एक को कभी न कभी तो किसी काम के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर जरूर लगाने पड़े होंगे। जरा याद करिए कैसा माहौल होता है वहां? 

हर कोने में पान गुटखा की पीक से बनी हुई चित्रकारी, हर तरफ धूल, गंदगी और कूड़े का अंबार, शोरगुल, हो-हल्ला वाला अराजकता भरा माहौल। सरकारी दफ्तर का बाबू मुंह में पान-गुटखा दबाए कितने बजे अपनी कुर्सी पर बैठेगा और कब उठ जायेगा इसकी गारंटी कोई नहीं ले सकता। और जब कुर्सी पर बैठेगा तो भी बिना सुविधा शुल्क लिए आपका काम किसी हाल में नहीं करनेवाला। अमूमन हर सरकारी दफ्तर का आजकल यही सीन है। 

और हां एक बात और, यदि कहीं जागरूक नागरिक बनने के चक्कर में आपने सरकारी दफ्तर के किसी कर्मचारी से पंगा ले लिया या उसकी कंप्लेन कर दी, तब तो हो चुका आपका काम। उसके बाद तो कई जोड़ी चप्पलें घिस जाएंगी लेकिन आपका काम लटका ही रहेगा। 

एक ओर जहां सरकारी दफ्तर में जाकर चप्पलें घिस जाने के बाद भी आपका काम हो जाएगा इसकी कोई गारंटी नहीं होती। वहीं अब तुलना करिए किसी प्राइवेट सेक्टर के ऑफिस में आपका कोई काम होता है और आप जाते हैं तो वहां का क्या सीन होता है?

ऑफिस में घुसते ही वहां का अनुशासित और साफ सुथरा माहौल देखकर आपको एक सुखद अनुभव होता है। सभी कर्मचारी समय की पाबंदी से अपनी अपनी सीट पर सलीकेदार वेशभूषा में अनुशासित तरीके से बैठकर पूरी लगन और निष्ठा से अपने अपने काम को अंजाम देते हुए दिखाई देते हैं। 

आप किसी भी प्राइवेट ऑफिस में जाइए आपको तुरंत सम्मानपूर्वक अटेंड किया जायेगा और आपकी समस्या का जल्द से जल्द निवारण करने की पूरी कोशिश की जाएगी ताकि आपको दोबारा न परेशान होना पड़े। 

आपको आपकी Complain के Solve किए जाने की अंतिम तारीख (Deadline) भी बता दी जाएगी और ज्यादातर मामलों में उस नियत तिथि के अंदर ही समस्या का समाधान कर दिया जाता है। यही नहीं यदि किसी कारणवश आपकी समस्या के समाधान में देर हो रही होगी तो आपको हर Step पर Status के बारे में Update भी किया जाएगा।

अब तो प्राइवेट कंपनियां घर तक आकर अपनी सेवाएं देने को तैयार हैं। अभी पिछले दिनों हमने घर बैठे Kotak Mahindra Bank का Online Account Open किया जिसके KYC के लिए Bank का Executive खुद घर आ गया। वहीं आपको PNB या SBI में एक Account खोलना हो तो आपको कम से कम 4-5 दिन तो अपना सब काम छोड़कर बैंक में दौड़ना ही पड़ेगा। वैसे भी Digitalization होने के बाद से इन सरकारी बैंकों का Server अक्सर Down ही रहता है।

कहने का मतलब ये की आप Government की अपेक्षा Private Office में बिना Time और Energy बर्बाद किए Easy Way में अपना काम करा सकते हैं या काम नहीं होने पर Complain कर सकते हैं, जिस पर तुरंत सुनवाई होती है और दोषी पाए जाने पर तुरंत उस जिम्मेदार कर्मचारी या अधिकारी पर कार्रवाई हो सकती है। यहां तक की उसकी नौकरी भी जा सकती है।

ये नौकरी जाने का डर ही है जिसकी वजह से प्राइवेट सेक्टर का हर कर्मचारी/अधिकारी अपना काम पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करता है। वहीं सरकारी विभागों में काम करने वाले लोगों के अंदर यह डर नहीं होता। वे निश्चित होते हैं कि उनकी नौकरी हर हाल में रहेगी, उसे कोई खत्म नहीं कर सकता। अनुशासन में रहने की कोई जरूरत नहीं, चाहे जैसे रहो, अपनी कुर्सी से जब चाहे उठकर बाहर चाय, पान की दुकान पर घंटों राजनीति बघारो। किसी से भी पंगा ले लो या काम मत करो। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? सस्पेंड किया जाएगा? उससे ज्यादा कुछ नहीं हो सकता। यदि ट्रांसफर होगा तो कोई बात नहीं, किसी और जगह नौकरी कर लेंगे। नौकरी को खत्म तो कोई कर नहीं सकता ? काम करो या नहीं Salary तो हर एक तारीख तक खाते में आ ही जायेगी।

बस यही सोच उन्हें आलसी, बददिमाग और कामचोर बना देती है। इसी कारण सरकारी दफ्तरों में ऐसी स्थिति है कि किसी का कोई काम आसानी से हो ही नहीं पाता। अत: मजबूरन अपना काम कराने के लिए लोगों को सुविधा शुल्क देना पड़ता है। 

आजकल तो एक कहावत आम हो गई है-

'सरकारी कर्मचारी काम न करने के लिए वेतन और काम करने के लिए घूस लेते हैं'

RTO, बिजली, राजस्व, शिक्षा, स्वास्थ्य, नगर निगम आदि केंद्र या राज्य सरकार के अधीन कोई भी विभाग हो सबका यही हाल है। 

निजीकरण क्यों जरूरी है या क्यों सही है? इसे साबित करने के लिए यहां कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं। What are the main reasons for privatization?

एक Pizza डिलीवरी ब्वॉय Pizza को 30 मिनट के अंदर दिए गए पते पर पहुंचा देता है, जबकि उसे भी रास्ते में बहुत सारे व्यवधान मिलते हैं। वो भी रास्ते में ट्रैफिक जाम आदि समस्याओं से दो-चार होता है लेकिन उसे पता है कि उसे 30 मिनट के अंदर Pizza डिलीवरी करना है। क्योंकि उसकी नौकरी का सवाल है तो वह हर हाल में 30 मिनट के अंदर Pizza डिलीवर करता है। 

वहीं दूसरी ओर आप देखिए की बड़ी से बड़ी घटना होने पर भी हमारी पुलिस कभी भी समय से मौके पर नहीं पहुंच पाती है। ऐसे मामले आए दिन देखे जाते हैं जब पुलिस घटनास्थल से महज चंद कदमों की दूरी पर मौजूद थी लेकिन उसे घटनास्थल तक पहुंचने में कई घंटे लग गए और कोई बड़ी घटना घटित हो गई। अक्सर देखने में आता है कि पुलिस के देर से घटनास्थल पर पहुंचने के कारण ही बहुत से लोगों की जान भी चली जाती है।

साफ है की पुलिस की लापरवाही की वजह से ही बड़ी घटना घटित हुई। पुलिस यदि घटनास्थल पर सूचना मिलते ही त्वरित गति से पहुंच जाए तो किसी बड़ी घटना को होने से अवश्य रोका जा सकता है। लेकिन वही बात है कि पुलिस विभाग के कर्मचारियों को नौकरी जाने का कोई डर नहीं है इसीलिए वह लापरवाही बरतते हैं और महज औपचारिकता करते हुए मौके पर तब पहुंचते हैं जब कोई अनहोनी घटना घट चुकी होती है।

अब आप तुलना करिए कि एक पिज्जा डिलीवरी बॉय के ऊपर सिर्फ खाने वाला पिज्जा ही समय से पहुंचाने की जिम्मेदारी है फिर भी वह अपना काम पूरी जिम्मेदारी और समय से पूरा कर रहा है जबकि उसके ऊपर पिज्जा कंपनी कितना खर्च करती है? मुश्किल से 10 हजार रुपए महीना। 

वहीं दूसरी ओर पुलिस विभाग है जिस पर जनता के जान-माल की सुरक्षा की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है और सरकार करोड़ों रुपए इनके वेतन भत्तों आदि पर खर्च करती है, फिर भी पुलिस अपना काम उतनी जिम्मेदारी से भी नहीं कर पाती जितना एक पिज्जा डिलीवरी बॉय करता है। 

अब आप खुद सोचिए ज्यादा संतोषजनक, तेज और भरोसेमंद सेवा कौन दे पा रहा है? सरकारी वाला या प्राइवेट वाला?

सरकारी नौकरी में लापरवाही के अन्य उदाहरण में शिक्षा विभाग का उदाहरण दे सकते हैं। यहां सरकारी शिक्षा व्यवस्था में बेसिक शिक्षा विभाग की स्थिति देखिए। एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक जिसका न्यूनतम वेतन 45000/- रुपए से ज्यादा ही होता है लेकिन वह स्कूल जाकर कभी ईमानदारी से शिक्षण कार्य नहीं करते हैं। 

वहीं प्राइवेट स्कूलों में जहां आजकल सभी लोग अपने बच्चों को शान से एडमिशन दिलाते हैं, वहां पर काम करने वाले प्राइवेट टीचर 5 से 10000/- रुपए वेतन पाकर भी इतनी अच्छी शिक्षा देते हैं कि हर कोई अपने बच्चों को इन प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ाना चाहता है। 

कारण वही की यदि वह अपनी परफॉर्मेंस सही नहीं रखेंगे, अच्छा नहीं पढ़ाएंगे तो उनकी नौकरी भी जा सकती है। नौकरी जाने का डर ही है जो उन्हें उनकी परफॉर्मेंस अच्छी रखने को मजबूर करता है। 

वहीं इसके उल्टे सरकारी शिक्षकों को नौकरी जाने का कोई डर नहीं है। वह पढ़ाएं या नहीं उन्हें उनका वेतन हर पहली तारीख को मिल ही जाना है। यही सोच उन्हें निकम्मा बना देती है और वे अपने कर्तव्य को ईमानदारी से नहीं निभाते हैं। 

यही कारण है कि सरकारी शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह फेल है। सरकार इतना बड़ा बजट शिक्षा पर खर्च कर रही है लेकिन उसका समाज के लिए कोई भी लाभ नहीं मिल पा रहा है। यदि सरकारी शिक्षा व्यवस्था का स्तर अच्छा होता तो कोई भी अपने बच्चों को इतने महंगे स्कूलों में क्यों पढ़ाता?

बिजली विभाग (Electricity Department) का ही उदाहरण देख लीजिए, जबसे इस विभाग में संविदा पर लाइनमैन नियुक्त किए जाने लगे हैं, बिजली फॉल्ट की समस्या तुरंत दूर होने लगी है। लोकल फॉल्ट आने पर आधी रात को भी ये संविदाकर्मी पोल पर चढ़कर तुरंत फॉल्ट ठीक कर देते हैं। जबकि इन संविदाकर्मियों को वेतन के नाम पर 10 हजार रुपए से भी कम मिलता है। वहीं जो बिजली विभाग के परमानेंट लाइनमैन हैं उन्हें हर माह वेतन के रूप में 40-45 हजार रुपए मिलते हैं लेकिन वो काम कुछ भी नहीं करते। जब तक बिजली विभाग की व्यवस्था इनके जिम्मे थी तो फॉल्ट की समस्या आने पर कई कई दिन लग जाते थे सही होने में। फर्क आपके सामने है।

What is the conclusion of privatisation?

इन सब उदाहरणों को देखते हुए यह बात पूरी तरह साबित हो जाती है कि निजीकरण (privatisation) इन सब समस्याओं को दूर करने का एकमात्र उपाय है। जिस भी कर्मचारी को अपनी नौकरी जाने का डर होगा वह हर हाल में अपना 100% देगा। अपनी अच्छी सेवाएं देगा, अपनी Performance सही रखेगा।

सरकार कोई भी हो उसे वोट के लिए तो जनता के बीच ही जाना होता है, इसीलिए सरकार को हर वर्ग चाहे वो सरकारी हो या प्राइवेट सबको खुश रखना उसकी राजनैतिक मजबूरी होती है। इसलिए सरकार के लिए हर विभाग का निजीकरण (Privatization) कर पाना तो संभव नहीं है। 

सरकारी विभागों का निजीकरण (Privatization) न भी किया जाए तो कम से कम इतनी बाध्यता तो रखी ही जाए की उनकी Performance समय-समय पर चेक की जाए और जिनकी परफॉर्मेंस डाउन हो रही है उनको Warning लेटर जारी किया जाए। उसमें यह भी प्रावधान हो कि यदि एक Level से नीचे उनकी Performance डाउन होती है तो उनको नौकरी (Naukari) से भी निकाला जा सके। 

सरकारी कर्मचारियों के लिए Public से Feedback लिए जाने का System भी Develop किया जाना चाहिए।

जब नौकरी जाने का डर होगा तो सरकारी कर्मचारी भी प्राइवेट कर्मचारियों की तरह पूरी लगन, निष्ठा और ईमानदारी से अपनी ड्यूटी करेंगे।

यहां भी वही कहावत चरितार्थ होती है-
'भय बिन होए न प्रीत'

*Disclaimer
इस लेख में जो भी उदाहरण दिए गए हैं वे सिर्फ प्राइवेट और सरकारी की तुलना हेतु दिए गए हैं। हमारा मकसद किसी भी विभाग या किसी पद पर कार्यरत किसी भी व्यक्ति विशेष पर आरोप लगाना या उसकी भावनाओं को ठेस पहुंचाना कत्तई नहीं है। 

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What are the problems with Privatisation in India? What is the conclusion of privatisation?
What are the main reasons for privatization?

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