जयशंकर प्रसाद कौन थे 

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जयशंकर प्रसाद कौन थे 

जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय –

आधुनिक हिंदी साहित्य और हिंदी रंगमंच से संबंधित सबसे प्रसिद्ध व्यक्तित्व जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 में हुआ था और 14 जनवरी 1937 में उनका निधन हो गया वह एक महान भारतीय कवि, उपन्यासकार और नाटककार थे, जिनका जन्म भारत में हुआ था
जयशंकर प्रसाद का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के सरायगोवर्धन नामक स्थान पर हुआ था जयशंकर प्रसाद के दादा जी का नाम शिव रत्न साहू था जयशंकर प्रसाद के पिता का नाम बाबू देवी प्रसाद था इनके दादा ओर इनके पिताजी तम्बाकू का व्यवसाय किया करते थे जिसके कारण इनका परिवार पूरे काशी में सुंघनी साहू के नाम से प्रसिद्ध था
जयशंकर प्रसाद को अपने शुरुआती जीवन में कुछ वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्होंने अपने पिता को छोटी उम्र में ही खो दिया था।

जयशंकर प्रसाद की शिक्षा –

जयशंकर प्रसाद प्रसाद जी के पालन-पोषण और शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्‍ध उनके बड़ भााई शम्‍भूरत्‍न जी ने किया सर्वप्रथम प्रसाद जी का नाम ‘क्‍वीन्‍स कॉलेज’ में लिखवाया गया, लेकिन स्‍कूल की पढ़ाई में इनका मन न लगा, इसलिए इनकी शिक्षा का प्रबन्‍ध घर पर ही किया गया घर पर ही वे योग्‍य शिक्षकों से अंग्रेजी और संस्‍कृत का अध्‍ययन करने लगे प्रसाद जी को प्रारम्‍ीा से ही साहित्‍य के प्रति अनुराग था वे प्रास: साहित्यिक पुस्‍तकें पढ़ा करते थे और अवसर मिलने पर कविता भी किया करते थे पहल तो इनके भाई इनकी काव्‍य-रचना में बाधा डालते रहे, परन्‍तु जब इन्‍होंने देखा कि प्रसाद जी का मन काव्‍य-रचना में अधिक लगता है, तब इन्‍होंने इसकी पूरी स्‍वतंत्रता इन्‍हें दे दी जयशंकर प्रसाद जी के हदय को गहरा आघात लगा इनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ गई तथा व्‍यापार भी समाप्‍त हो गया पिता जी ने सम्‍पत्ति बेच दी इससे ऋण के भार से इन्‍हें मुक्ति भी मिल गई, परन्‍तु इनका जीवन संघर्शों और झंझावातों में ही चक्‍कर खाता रहा।

भाषा शैली –

प्रसाद जी की भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों की बहुलता है भावमयता उनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है इनकी भाषा में मुहावरों, लोकोक्तियों तथा विदेशी शब्दों का प्रयोग न के बराबर हुआ है प्रसाद जी ने विचारात्मक, चित्रात्मक, भावात्मक, अनुसन्धानात्मक तथा इतिवृत्तात्मक शैली का प्रयोग किया है।

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जयशंकर प्रसाद जी की पोशाकें एवं वेश-भूषा –

प्रसाद जी प्रायः घर पर सफेद खद्दर के कुर्ते और धोती में रहा करते थे, किन्तु बाहर निकलने पर रेशमी कुर्ता, रेशमी गाँधी टोपी, महीन खद्दर की धोती, रेशमी चादर या दुपट्टा, फुल-स्लीपर और एक छड़ी हाथ में रहती थी प्रसाद जी को छड़ी रखने का बहुत शौक था, यद्यपि वह पूरी तरह अलंकार का ही काम देती थी।

जयशंकर प्रसाद जी को प्राप्त सम्मान एवं पुरस्कार –

जयशंकर प्रसाद जी ने अपने छोटे से जीवन काल में हिन्दी-साहित्य की जो अनवरत सेवा की है उमके लिए हिन्दी साहित्य सदैव प्रसाद जी का ऋणी रहेगा प्रसाद जी के अनेक रचनाओँ में कामायनी एक सर्वश्रेष्ठ रचना है इसलिए प्रसाद जी के महाकाव्य कामायनी की विशिष्टता को ध्यान में रखकर हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग ने उन्हें मंगलाप्रसाद पारितोषिक उपाधि प्रदान किया।

जयशंकर प्रसाद की साहित्यिक विशेषताएं –

‘प्रेम पथिक’ की रचना पहले ब्रजभाषा में की गई थी बाद में उसे खड़ी बोली में रूपांतरित कर दिया गया ‘झरना’ के पूर्व की सभी रचनाएं द्विवेदी युग में लिखी गई थीं जयशंकर प्रसाद की आरंभिक शैली संस्कृत गर्भित है ‘झरना’ में कवि ने आंतरिक कल्पना द्वारा सूक्ष्म भावनाओं को व्यक्त किया है बाह्य सौंदर्य का चित्रण करते समय भी उन्होंने सूक्ष्म और मानसिक पक्ष को व्यक्त करने की ओर ध्यान दिया है ‘आंसू’ का आरंभ कवि की विरह-वेदना से हुआ है। अंत में ‘आंसू’ को विश्व-कल्याण की भावना से संबंधित कर दिया है अंत तक आते-आते कवि अपने व्यक्तिगत जीवन की निराशा और विषाद से ऊपर उठकर अपनी पीड़ा को करुणा का रूप देकर विश्व प्रेम में बदल देता है ‘लहर’ गीत कला का सुंदर उदाहरण है कल्पना की मनोरमता, भावुकता तथा भाषा शैली की प्रौढ़ता सर्वत्र दृष्टिगोचर होती है ‘कामायनी’ अंतिम कृति है इसके द्वारा मानव सभ्यता दिखलाई गई है संक्षिप्त कथानक में मानव जीवन के अनेक पक्षों को समन्वित करके मानव जीवन हेतु व्यापक आदर्श व्यवस्था का प्रयत्न किया है पात्रों के चरित्रांकन में मनुष्य की अनुभूतियों, कामनाओं और आकांक्षाओं की अनेक रूपता वर्णित है यह कामायनी की चेतना का मनोवैज्ञानिक पक्ष है मनु श्रद्धा, इड़ा एवं मानव के द्वारा मानव मात्रा के मनोजगत के विविध पक्षों का चित्राण चिंता, आशा, वासना, ईष्र्या, संघर्ष एवं आनंद आदि सर्गों में किया गया है।
इतिहास में रूपक का भी अद्भुत सम्मिश्रण हो गया है पात्रों के ऐतिहासिक महत्व के साथ-साथ सांकेतिक अर्थ भी है मनु-मन, श्रद्धा-हृदय तथा इड़ा-मस्तिष्क का प्रतीक है बुद्धिवाद के विरोध में हृदय पक्ष की प्रधानता दिखलाई गई है शैव दर्शन के आनंदवाद को जीवन के पूर्ण उत्कर्ष का साधन स्वीकारा गया है ‘कामायनी’ गौरवशाली उपलब्धि है।

हिंदी साहित्य में रूचि की शुरुवात –

वह बचपन से ही प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे ऐसा कहा जाता है कि इन्होने अपने बाल्यकाल में ही मात्र 9 वर्ष की अवस्था में, अपने गुरू ‘रसमय सिद्ध’ को ब्रज भाषा में ‘कलाधर’ नाम से एक सवैया लिखकर दिखाया था।
पहले तो इनके बड़े भाई इनकी काव्य रचना से खुश नहीं थे क्योंकि वह चाहते थे कि जयशंकर प्रसाद जी उनके पैतृक व्यवसाय का कार्य संभाल ले परंतु बाद में जब उन्हें लगा कि इनकी रूचि साहित्य रचना की तरफ अधिक है तो उन्होंने जयशंकर प्रसाद जी को पूरी छूट दे दी
अब प्रसाद जी पूरी तन्मयता के साथ काव्य एवं साहित्य रचना के क्षेत्र में आगे बढ़ने लगे और इन्हीं दिनों इनके साथ एक बहुत दुखद घटना घटित हुई जिसमें इनके बड़े भाई शंभू रतन जी का भी स्वर्गवास हो गया इससे जयशंकर प्रसाद जी को बहुत बड़ा धक्का लगा और अब इनका व्यापार भी समाप्त हो गया था जिससे इनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ गई।
इनके पिताजी ने अपने व्यापार की तरक्की के लिए उधार लिया था, जो उस समय नहीं चुका पाए थे और अब लोगों ने जयशंकर प्रसाद जी से अपना उधार दिया हुआ पैसा वापस मांगने लगे तो जयशंकर प्रसाद जी ने लोगों का उधार चुकाने के लिए अपनी पैतृक संपत्ति को बेच दिया। अब ऐसा लग रहा था जैसे कि जयशंकर प्रसाद के जीवन में दुखों का पहाड़ टूट पड़ा हो।

जयशंकर प्रसाद की कविताएँ –

1.कानन कुसुम (वन पुष्प का अर्थ है)
2.झरना (जलप्रपात का अर्थ है)
3.चित्राधर
4.लहार
5.हिमाद्रि तुंग श्रृंग से
6.महाराणा का महत्त्व
7.भारत महिमा
8.कामायनी वर्ष 1935 में (मनु और बाढ़ के बारे में एक महाकाव्य)
9.एक घुनो (मतलब एक घूंट)
10.अनु नारी
11.आतमकथ्य
12.प्रायनगीत
13.प्रेम पथिक
14.बीती विभावरी जाग री
15.कामायनी – लज्जा परिच्छेद
16.कामायनी – निर्वेद
17.महाकाव्य
18.कामना
19.चित्राधर
20.आह! वेदना मिली विदाई
21.दो बुंदे
22.तुम कनक किरण
23.अरुण याह मधुमय देश हमारा
24.सब जीवन बीत जाता है

जयशंकर प्रसाद के नाटक –

1.स्कंदगुप्त वर्ष 1928 में ( सम्राट स्कंदगुप्त का इतिहास )
2.चंद्रगुप्त ( सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास )
3.कामना
4.करुणालय
5.अजातशत्रु
6.ध्रुवस्वामिनी, जनमेजय का नाग यज्ञ, राजश्री
7.तस्किया
8.परिनया
9.राजश्री
10.समुद्रगुप्त
11.प्रायश्चित
12.जयशंकर प्रसाद की पुस्तकें
13.प्रतिनिधि काहनियां
14.प्रसाद का सम्पूर्ण काव्य
15.प्रसाद के सम्पूर्ण नाटक एवम एकांकी
16.अजातशत्रु
17.प्रसाद के सम्पूर्ण उपन्यास
18.जनमेजय का नाग यज्ञ
19.काव्य और कला तथा अन्य निबंध
20.मरुस्थल तथा अन्य कहानियां
21.आंधी
22.अति प्राचीन भारत
23.चर्चित कहानियां – जयशंकर प्रसाद
24.इंद्रजाल
25.जयशंकर प्रसाद – कालजयी कहानियां
26.जयशंकर प्रसाद की लोकप्रिय कहानियां
27.जयशंकर प्रसाद की रोचक कहानियां
28.जयशंकर प्रसाद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां
29.जयशंकर प्रसाद की यादगारी कहानियां
30.करुणा की विजय
31.पाप की पराजय
32.जयशंकर प्रसाद ग्रंथावली

लघु कथाएँ –

1.छाया
2.आकाशदीप
3.ममता
4.बंदी
5.प्रतिध्वनि
6.मधुवा
7.इंद्रजाल
8.छोटा जादुगर
9.आंधी
10.पुरस्कार

जयशंकर प्रसाद के उपन्यास

1.तितली
2.कनकल
3.इरावती

जयशंकर प्रसाद जी की मृत्यु –

यद्यपि प्रसाद जी बड़े संयमी थे, किन्‍तु संघर्ष और चिन्‍ताओं के कारण इनका स्‍वास्‍थ्‍य खराब हो गया इन्‍हें यक्ष्‍मा रोग होने के कारण सन1937 ई. की 15 नम्‍बर को वे सदा के लिए इस संसार से विदा हो गए।

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